शीर्षक -आँखों का काजल!
विषय – आँखों का काजल!
तेरी आंँखों का काजल लगे ऐसे,
समुद्र में छाई नीली परछाई जैसे।
कजरारी आंँखों का काजल,
हिरनी के नयनों सा लगता है।
काजल भरे नयना देख तेरे,
डूब जाने को मन करता है ।
मेरा यह बावरा मन तेरी,
पलकों का स्पर्श चाहता है।
तेरी आंँखों में लगा काजल,
हृदय को घायल करता है।
काली घटा का घनघोर बादल,
उमड़ -घुमड़ के बरसता है।
मदहोश तेरी आंँखों का काजल,
बुरी नजरों से बचाकर रखता है।
छाया हुआ स्नेहिल स्याही बादल,
तेरी झील सी आंँखों में लगता है!
सुषमा सिंह*उर्मि,,