शीर्षक:माँ मेरी परिकल्पना
१७-
माँ ह्रदय में बसी आस्था हैं
माँ विश्वास का प्रतीक हैं
माँ संवेदना भरी वेदना है,
माँ मेरे मन की भावना है,
माँ ही तो सुखद अहसास है
माँ में परिपूर्ण वात्सल्य हैं
माँ धैर्य,त्याग,ममता की प्रतिमूर्ति है
माँ ही दुःख में मीठी सी दवा हैं
माँ ही हमारी अटूट आरजू हैं
माँ पृथ्वी पर ईश्वर स्वरूप हैं
माँ से सुंदर कोई स्वरूप नहीं हैं
माँ ही मन की कल्पना हैं
माँ ही मन की जीत हैं
माँ यादों में शेष तभी विशेष हैं
माँ के ये सारे अपने वेश हैं
माँ मेरी मेरे लिए विशेष हैं
माँ अब बस यादो की अवशेष हैं
माँ ही पूर्णता का अर्थ है
माँ सर्वत्र हैं, परमेश्वर रूप हैं
माँ ही पूर्ण आकार है,
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद