शीर्षक:पर्वत सी अटल नारी
शीर्षक:पर्वत सी अटल नारी
मैं पर्वत सी नारी
अडिग होंसले मेरे कर्तव्य निभाती
अजंता एलोरा पर उकेरी गई आकृति
मुझ बिन नही पूर्ण होती चित्रकारी
हर मुद्रा उकेरी पाषाण पर मेरी
मैं पर्वत ही नारी
मैं ही पन्नाधाय माँ कहलाई
रानी पद्मावती,जीजाबाई ,रानी लक्ष्मीबाई,
भारत की वीरांगना मैं ही कहलाई
मैं ही सावित्रीबाई फुले कहलाई
मैं पर्वत सी नारी
मैं ही घुंघरू बाँध नर्तकी कहलाई
रूपसी बन पुरुष को सदैव ही रिझाइ
आकर्षण बना सौंदर्य को अपने
सम्पूर्ण लोक में मैं छाई
मैं पर्वत सी नारी
तांडव बन मैं ही पर्वत पर
उग्र रूप धारण कर पाई
किया संहार बुराई का तभी
माँ रूप में पहचान बनाई
मैं पर्वत सी नारी
मैं ही रति रूप में पुरुष को रिझाई
अपने प्रेमपाश में बांध आने पास ले आई
अलौकिक प्रेम के इस खेल को जीत और
अपने अस्तित्व की रक्षा कर मैं नारी कहलाई
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद