शीर्षक:गुच्छा चाबी का
एक चाबी के गुच्छे से जोड़ती घर परिवार
आभूषण सा लिए घूमती उसको अपने संग
लगा ढुङ्गे पर इठलाती कर सोलह श्रंगार
तभी तो कहलाती घर की लक्ष्मी
घर मे आती लक्ष्मी रूप में जब स्त्री
तो उसको सौंपी जाती है घर की कुंजी
तभी तो वो पूर्ण समर्पण से स्वीकारती घर को
संभाल कर रखती आने घर की धहोहर को
एक चाबी के गुच्छे से जोड़ती घर परिवार
आभूषण सा लिए घूमती उसको अपने संग
लगा ढुङ्गे पर इठलाती कर सोलह श्रंगार
तभी तो कहलाती घर की लक्ष्मी
खुद रखती निगरानी घर पर
चाबी का ये गुच्छा जैसे जोड़े रखता सब चाबी को संग
वैसे ही घर की लक्ष्मी रखती ढुङ्गे पर सम्भाल उसको
चाबियों का गुच्छा न गम जाए तो रखती अपने संग
एक चाबी के गुच्छे से जोड़ती घर परिवार
आभूषण सा लिए घूमती उसको अपने संग
लगा ढुङ्गे पर इठलाती कर सोलह श्रंगार
तभी तो कहलाती घर की लक्ष्मी
जो लटके सुरक्षा-कपाटों पर तले रक्षक बन जाती है उनकी
अब तो पूरा घर उस पर ही निर्भर हो जाता है
अपनत्व बिखेरती घर मे सब पर
बनाती अपने लिए स्वयम ही स्थान
एक चाबी के गुच्छे से जोड़ती घर परिवार
आभूषण सा लिए घूमती उसको अपने संग
लगा ढुङ्गे पर इठलाती कर सोलह श्रंगार
तभी तो कहलाती घर की लक्ष्मी
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद