शिव ताण्डव स्तोत्र
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● शिव ताण्डव स्तोत्र ●
जटा स्वरूप वन सघन उमंग गंग खेलती
उछंग सिन्धु सी तरंग लट विहंग ठेलती
गले भुजंग मालिका सप्रेम कंठ वारती
डमड़ डमड़ डमड़ मधुर निनाद रव उचारती ।1।
देवि गंग शीश पर विलास हास उज्वला
बाल चन्द्र भाल पर तरंगिणी समुज्वला
धधकधधक धधक ललाट अग्निज्वाल प्रज्वला
आशुतोष शंभु देव नष्ट सब करो बला ।2।
पार्वती विलास मय नयन कटाक्ष चिर शिवा
हर्ष से विभोर चित्त रोम रोम थिर हुवा
भक्त पर कृपा की दृष्टि नष्ट सब बिपत्तियाँ
शिवचरण मे ही रमे समस्त मम प्रवृत्तियाँ ।3।
मन प्रसन्न आदि देव सर्व प्राणि रक्षणा
पीत मणि भुजंग कांति दस दिशा प्रदक्षिणा
व्याघ्र चर्म भस्म अंग सूर्य कोटि सम प्रभा
देव देव शंभु देव अंक सोहती विभा ।4।
धूलि राशि पुष्प गुच्छ इन्द्र आदि देवता
सर्प राज माल कंठ तन सुगंध ठेवता
मेटिये समस्त देव जिंदगी की आपदा
दीजिए प्रभो हमें असीम सृष्टि सम्पदा ।5।
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ललाट अग्नि ज्वाल धार मार भस्म कर दिया
समस्त देव इन्द्र आदि गर्व चूर्ण कर दिया
अर्ध चन्द्र भाल सिर तरंग गंग राजती
भक्त पर कृपा की दृष्टि रिद्धि सिद्धि गाजती ।6।
धधक धधक प्रचण्ड ज्वाल कामदेव जारती
पुलक पुलक समग्र सृष्टि आरती उतारती
पार्वती उरोज शिव सुरम्य चित्र कारिता
प्रचण्ड चंड ताण्डवम् अनूप रूप धारिता ।7।
नवीन मेघ मण्डली समान कंठ कालिमा
अमावसी निशा सदृश उदीयमान लालिमा
गजेन्द्र चर्म गंग बाल चन्द्र सोह भाल पर
जगत का बोझ धारते जो काल के कपाल पर ।8।
शम्भु कंठ कंध नील कम्बु सा खिला हुआ
श्याम शुभ्र सा प्रकाश सृष्टि मे मिला हुआ
दक्ष यज्ञ काम अंधसुर त्रिपुर विनाशका
सदा भजूँ मैं बार बार मृत्युजीत शासका ।9।
कलानिधान काम जार जो सदा अनष्ट हैं
त्रिपुर गजान्धसुर सहित सभी किये विनष्ट हैं
दक्ष यज्ञ ध्वंस इस जगत के उच्च भाल हैं
मृत्यु के लिए भी जो महा कराल काल हैं ।10।
अतीव वेग सर्प फूफकार की विशालता
ललाट पर प्रचंड अग्नि ज्वाल की करालता
धिमिग् धिमिग् धिमिग् मृदंग मंद ताल कूजता
नृत्य में निमग्न शंभु पग निनाद गूँजता ।11।
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अमूल्य रत्न से लसित गले मे सर्प मालिका
फटिक सिला कठोर अतिमसृण विराज शायिका
शत्रु मित्र नृप प्रजा समान दृष्टि शंकरा
भजूँ सदा मैं भक्ति से अखंड शिव दिगम्बरा ।12।
गंग के कछार कुञ्ज में निवास कब मिले
नित्य देखता रहूँ मुखारविन्द शिव खिले
ध्यान में रमा रहूँ त्रिनेत्र कांति आप्त हो
मंत्र उच्चार से अक्षय सुखों की प्राप्ति हो ।13।
पुष्प माल केश देवकामिनी पराग ज्यों
शंभु अंग अंग मन हरण सुरम्य लाग त्यों
सृष्टि का समस्त सौन्दर्य तेज सर्वदा
स्वामि का अनूप रूप देखता रहूँ सदा ।14।
कामिनी स्वरूप अणि महान अष्ट सिद्धियाँ
शंभु का विवाह गान सर्व पुण्य रिद्धियाँ
श्रेष्ठ मंत्र देव कामिनी पवित्र दृष्टियाँ
सर्व पाप मुक्त सब जगतमयी प्रवृष्टियाँ ।15।
शंभु ताण्डव स्तोत्र नित्य जो पठन करे
पवित्र प्राणि मात्र सब जो प्रेम से श्रवण करे
शिव कृपा मिले अवश्य शिव में ही विराज हो
भ्रम से मुक्त हो मनुष्य संपदा सुराज हो ।16।▪
शिव पूजन ताण्डव पठन, गान प्रदोषे काल ।
स्थिर होंगी चञ्चला, मानव मालामाल ।।
शिव तांडव स्तोत्र का, काव्य अनुवाद कुबेर ।
मूल स्वरूप यथा जथा, भक्ति दसानन टेर ।। ।17।
Kuber Mishra
Mumbai
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