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10 May 2024 · 4 min read

शिवोहं

शिवोहं शिवोहं शिवोहं चिता भस्म भूषित श्मसाना बसे हंम शिवोहं शिवोहं शिवोहं।।

अशुभ देवता मृत्यु उत्सव हमारा
शुभोंह शुभोंह शुभोंह शुभोंह शिवोहं शिवोहं शिवोहं ।।

भूत पिचास स्वान सृगाल कपाल कपाली संग साथ हमारे स्वरों हम
स्वरों हम, स्वरों हम ,शिवोहं शिवोहं
शिवोहं ।।

गले सर्प माला जटा गंग धारा
मुकुट मुंड माला देवों हंम, देवों हम,
देवोँ हम ,देवोँ हम शिवोहं शिवोहं शिवोहं।।

डमरू त्रिशूल शीश चंद्र धरे हम
पहने मृग छाला कैलाशम बसेंह
शिवोहं शिवोहं शिवोहं।।

देवता दानव सब शरण हमारे
जगत कल्याण धैर्य ध्यान त्रिनेत्र धरे हम देव तत्व की शक्ति अक्षुण सृष्टि रहे सुरक्षित विषपान करें हम विषपान करे हम विष पान शिवोहं शिवोहं
शिवोहं ।।

अकाल का काल महामृत्युंजओ हम
दुख क्लेश हर्ता विघ्न विनाशक हम
पार्वती अर्ध अर्धागिनी अर्ध नारीश्वरों हम अर्धनारीश्वरों हम अर्ध नारीश्वरों हम शिवोहं शिवोहं शिवोहं।।

वसहा बैल नंदी है वाहन हमारा
रौद्र रुद्र तांडव दुष्ट संघार कारक
औघड़ रूप धरे हम औघड़ रूप धरे हम औघड़ रूप धरें हम शिवोहं शिवोहं
शिवोहं शिवोहं।।

पकवान मिष्टान्न नही प्रिय मुझको
भांग धतूर बेल पत्रम प्रिये हम
शिवोहं शिवोहं शिवोहं शिवोहं।।

महादेव ,शिव शंकर, भोला ,गङ्गाधर
आशुतोष पंचाछरी मंत्र ॐ नमः
शिवायः से रीझे हम शिवोहं शिवोहं
शिवोहं शिवोहं।।

पाप शाप विनाशक मोक्ष मुक्ति
प्रदायक कलयुग जीव उपकार
में हम द्वादस ज्योतिर्मय ज्योतिर्लिंग
बसे हम बसे हम शिवोहं शिवोहं शिवोहं।।

नांदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
[5/10, 1:03 AM] Bul Bul Tripathi: प्यास –

प्यास आग हैं जो जूनून का
जज्बा बुझने की बात दूर खुद को डुबोती इंसान डूबता जाता अपने ही अश्क से प्यास बुझाता फिर भी प्यासा रह जाता।।

मरने के बाद भी दूँनिया
कहती प्यास होगा प्यास आश है प्यास आग है प्यास पीड़ा का एहसास।।

प्यास जज्बा जुनून प्यास आगे बढ़ने कि होड़ है प्यास जरूरी हैं प्यास जगाना जीवन कि मजबूरी है ।।

अब नही तो चाह नही चाह नही तो राह नही प्यास परिवर्तन कि धारा है प्यास कहे तो माया भी प्यास प्रतिस्पर्धा प्रतिद्वंद्वी का करती निर्माण प्यास जीवन का संघर्ष ।।

प्यास पराक्रम को परिभाषा देता प्यास जीत हार का स्वाद प्यास उद्देश्यों का आयाम अध्याय प्यास आमंत्रण देता जीवन का संग्राम।।

प्यास कभी ना बुझने दो प्यास सदा ही जगने दो प्यास नही तो जीवन निर्थक असहाय प्यास वीरोचित गाथा कि पृष्ठभूमि प्यास से ही उद्भव उत्सव जीवन का अभिमान।।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।
[5/10, 1:03 AM] Bul Bul Tripathi: मौत –

मौत सच्चाई है यारो सच का
यकीन करना सीखो जिंदगी जीना
सीखो फरेब की दुनियां से बाहर
निकलना सीखो।।

मां बाप को चिते पर खुद लिटाया अपने हाथों जलाया फिर भी रहता नहीं सच का भान सच के साथ जीना सीखो।।

इर्द गिर्द ही घूमती सच्चाई से भागता क्यों कभी दूर कभी पास
आते मौत से डरता क्यो है मौत ही महबूबा कितना भी भागो गले
लगाती मौत से ऊंचा निकलना सीखो।।

मौत सिर्फ काया करती स्वाहा
मौत के बस में नहीं तारीख के
इंसान को जला सके दफन कर सके ये तारीख बनाना बदलना सीखो।।

मौत के बाद भी जिंदा रहोगे गर
वक़्त कि पहचान बन गए अपने
वर्तमान में नया इतिहास रच गए
जिंदगी के लम्हों में नई इबारत
गढ़ना सीखो।।

आने वाले वक्त के लम्हों को अपने होने का एहसास दे गए
खुद के होने का इतवार करना सीखो।।

जिंदगी के हर लम्हे को जिंदा बन
कर जियो इंसानियत कि इबादत
में खुदा भगवान को खोजो मिल
जायेगा किसी न किसी शक्ल में
मौत कि परछाई से आगे निकलना
सीखो।।

रेगिस्तान में प्यासे हिरन सा इधर उधर भागना छोड़ो मौत सच्चाई पास हो या दूर होना ही होता एक न एक दिन रूबरू सच से डरना
नहीं सच का सत्यार्थ जहा में बनाना सीखो।।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।
[5/10, 1:03 AM] Bul Bul Tripathi: प्रेम –

प्रेम में छल नहीं प्रेम निर्झर निर्मल जल जैसा ।।

प्रेम सात्विक ईश्वर आराधना प्रेम में प्रपंच पाखंड कैसा।।

प्रेम हृदय स्पदन का स्वर संगीत प्रेम मन मोहन मन मीत प्रेम सरोवर पुष्प जैसा ।।

प्रेम कली कोमल मधुमती मधुमास प्रेम वर्षा फुहार प्रेम ज्वाला आग जैसा।।

प्रेम गागर में सागर कि तृप्ति प्रेम जगत का सार प्रेम सत्य संसार जैसा।।

प्रेम नैतिकता कि सीढ़ी प्रेम सद्भवना सबृद्धि जैसा ।।

प्रेम शत्र शास्त्र प्रेम अटल विश्वास प्रेम आस्था अनुभूति जैसा ।।

प्रेम पत्थर कि मूरत में चेतन शक्ति जैसा प्रेम परस्पर मर्यादा आचार व्यवहार जैसा ।।

प्रेम अविरल निश्चल प्रेम साक्ष्य सत्य संसार जैसा।।

प्रेम विरह वियोग प्रेम मिलन संयोग प्रेम आंसू की धारा मुस्कानों कि भाषा जैसा ।।

प्रेम गम की गहराई प्रेम सागर अंतर्मन ऊंचाई आकाश जैसा ।।

प्रेम जज्बा जुनून आग प्रेम जज्बातों में डुबोती तूफानों की किस्ती जैसा ।।

प्रेम अश्क में आंशिक डूब ही जाता बुझती नही प्यास प्रेम प्यास कि आग जैसा ।।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश

Language: Hindi
1 Like · 17 Views
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