शिकायत
तुम्हें मुझसे हरदम थी शिकायत,
कि मैं तुम्हें कभी नहीं लिखता,
मैं लिखना चाहता हूं पर पूरे हक से,
मैं लिखूंगा तुम्हारे नर्म, नाजुक,
गुलाबी, लरजते होंट,
पल दर पल झपकती, झुकती
झील सी भरी गहरी, शांत आंखें,
हिमगिरि पर भटकते बादलों
सी छुअन का अहसास देती जुल्फें,
पुरानी नदी की घाटी सी बलखाती कमर,
पर तब जब तुम कभी बैठोगी
मेरे करीब कुछ ऐसे,
कि तुम्हारा सिर हो मेरे कंधे पर,
और मैं गिन सकूं मेरी गर्दन पर,
तुम्हारी गर्म गहरी सांसें,
और हमारी आंखें खोई हों,
सब कुछ भूल बस एक दूजे में,
और मैं देख सकूं मेरा अक्स उनमें,
अगर हम न भी मिले मैं तब भी लिखूंगा,
लिखूंगा आंसू भरी सुर्ख आंखें और,
उन आंसूओं डूब चुके ख्वाब,
पर मैं तुम्हें फुर्सत से लिखूंगा जरूर।
पुष्प ठाकुर