शाश्वत सत्य
श्वास मिली जब शरीर को
रोए चीखें चिल्लाए ,
श्वास जाए जब शरीर से
शांत मुग्ध हो जाए।
धड़कन धड़कन प्रेम हो
हृदय प्रेम आधार,
घृणा ईर्ष्या द्वेष को
मत कीजिए स्वीकार।
चलना नियम प्रकृति का
रुकने का क्या काम,
अनवरत गति से बढ़ चलो
सुख-दुःख एक समान,
आज हरा,कल पीला
परसों मिट्टी में मिल जाए,
यह ही शाश्वत सत्य है
क्यों झूठ-मूठ दुःख पाए।