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18 Mar 2021 · 1 min read

शारदे के हम पुजारी

शारदे के हम पुजारी

शोलों सी जलती जमीं पर हम तराई रोपते हैं…
है नहीं अधिकार लेकिन बेईमानी रोकते हैं…

है जिन्हें अधिकार सौंपा मुंह सुरसा सा है उनका…
प्रगति कैसे पल्लवित हो काम खुरपा सा है उनका…
आमजन रोटी जुगत के फेर में हर दिन उलझते,
कैसे सुलझें दाम पेटी और खोखा में है उनका…
शारदे के हम पुजारी आत्मबल से टोकते हैं…
है नहीं अधिकार लेकिन बेईमानी रोकते हैं…

कागजों से फ़सल लेने हेतु उलझन बो रहे हैं…
देश जाए भाड़ में सब तान चादर सो रहे हैं…
बेबसों का काम हो तो नियमों के पन्ने पलटते,
खुद उन्हीं नियमों के आखर धो रहे हैं…
बेवफ़ाई की धरा हम आशनाई खोदते हैं…
है नहीं अधिकार लेकिन बेईमानी रोकते हैं…

हम नहीं बाबू न अफसर ना कोई औहदा जमीं है…
लेखनी की धार पैनी, लिख बताते क्या कमी है…
हम जरूरतमन्द की आँखों के आँसू से दरकते,
वो उन्हें कहते की कातिल मयकसीं हैं…
है न खंजर पर सिपाही, हम कलम से कौंदते हैं…
है नहीं अधिकार लेकिन बेईमानी रोकते हैं…

भारतेन्द्र शर्मा “भारत”
धौलपुर, राजस्थान

Language: Hindi
1 Like · 3 Comments · 322 Views
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