शायरी
साथ अपनों का कुछ ऐसे छूटता गया
बातों का सिलसिला जब धीरे-धीरे खत्म होता गया
एक वक़्त ऐसा आया फ़िर,
कि सामने से गुज़रकर भी
एक दुसरे को देखना भी बंद हो गया।
साथ अपनों का कुछ ऐसे छूटता गया
बातों का सिलसिला जब धीरे-धीरे खत्म होता गया
एक वक़्त ऐसा आया फ़िर,
कि सामने से गुज़रकर भी
एक दुसरे को देखना भी बंद हो गया।