शांतिवार्ता
9. शांतिवार्ता
शक्तिहीन की शांतिवार्ता कायरता कहलाती है, डोल उठे जब चक्र सुदर्शन तो गीता कहलाती है ।
पाक दिया और तिब्बत छोड़ा दिया चीन को भाग, और करी अब धैर्य परीछा तो उगलेगें आग ।
भष्म करेंगे भष्मासुर को अगर कभी ललकारा, विधि को भी ये भान नहीं क्या होगा भाग्य तुम्हारा ।
स्वर्ग अगर है कहीं धरा पर तो है वो कश्मीर ,
पहले तो केवल खींचा था अबकी देंगे चीर ।
इतने टुकड़े होंगे अबकी जोड़ नहीं पाओगे , हिन्दुस्तानी मज़हब को फिर तोड़ नहीं पाओगे ।
या अधिकृत कश्मीर सौंप दो या होगा इंसाफ , पहले तो आधा तोड़ा था अबकी पूरा साफ ।
मुँह में राम बगल में छूरी और करते हो यारी,
प्यार मोहब्बत की बोतल में भरी हुई गद्दारी ।
बनो अनुज तुम गले लगा लूँ पूरे हों सब काज ,
जैसे भाई भरत की खातिर तजा राम ने राज ।
गौरी गज़नी बना बना कर जीत नहीं पाओगे,
कर्जे की रोटी से दबकर बेबस मर जाओगे ।
बना लिया है अणुबम हमने अपनी बात जताने को,
नहीं चाहिए कोई मसीहा झूठ मूठ बहलाने को ।
है त्रिशूल सा खड़ा हिमालय और कमंडल गंगा है,
अब वो क्या प्रतिघात करेगा जो खुद भूखा नंगा है।
भूल हुई सन् सैंतालिस में रोटी अलग पकाई थी , फूट डालने वालों ने तब अपनी दाल गलाई थी ।
उस त्रुटि का प्रतिवाद यही दीवार बीच की गिरवा दो ,
खाई बनी जो भाई भाई में उसे प्रेम से भरवा दो ।
नहीं युद्ध से अब हम अपनी भड़की आग बुझा सकते,
साथ हुए यदि हम दोनों तो सारा विश्व झुका सकते।
शरण हमारी आ जाओ हम माफ तुम्हें कर देंगे,
वरना दुनिया के नक्शे से साफ तुम्हें कर देंगे ।
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प्रकाश चंद्र ,लखनऊ
IRPS (Retd)