अब तुझे जागना होगा।
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
जन्माष्टमी विशेष - फिर जन्म लेना
बिन बोले ही हो गई, मन से मन की बात ।
अगर मरने के बाद भी जीना चाहो,
न जाने क्या ज़माना चाहता है
तुमसे एक पुराना रिश्ता सा लगता है मेरा,
तेरे उल्फत की नदी पर मैंने यूंँ साहिल रखा।
मैं तन्हाई में, ऐसा करता हूँ
Ghazal
shahab uddin shah kannauji
माँ मैथिली आओर विश्वक प्राण मैथिली --- रामइकबाल सिंह 'राकेश'
शूर शस्त्र के बिना भी शस्त्रहीन नहीं होता।
करें स्वागत सभी का हम जो जुड़कर बन गए अपने