Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
9 Apr 2024 · 2 min read

अस्तित्व

कुछ साल पहले एक फिल्म आई थी,’अस्तित्व ‘।कुछ ऐसी हीं फिल्मों को ढूंढ-ढूंढ कर देखना शौक है मेरा।इस तरह की फिल्में स्त्रियों के कुछ अनछुए किरदार को उजागर करती हैं।
इसकी नायिका और नायक, दोनों बेहतरीन कलाकार हैं।तब्बू ने तो अभिनय की ऊँचाईयों को छुआ है।
कुछ अभिनेत्रियां ऐसी हैं जिन्हें अभिनय करने की आवश्यकता होती ही नहीं,अभिनय जैसे छलकता है उनके अंग-प्रत्यंग से।
यह फिल्म जहाँ और जैसे शुरू होती है,इसका अंत सटीक और सारगर्भित होता है।
स्त्री अपने अस्तित्व की लड़ाई पीढ़ियों से लड़ती चली आ रही है।उसने अपने जीवन का क्षण-क्षण अपने परिवार, बच्चों, जिम्मेदारियों को दिया होता है।वह इन सबमें अपने शौक, इच्छा,खुशियों को इस तरह भूल जाती है,जैसे एक कप चाय की प्याली में शक्कर, दूध और पानी अपना-अपना अस्तित्व भूल जाते हैं,,याद रह जाती है तो बस,, चाय।
नायिका अपने जीवन का एक लम्हा अपने लिए जीती है और वह उसके माथे पर कलंक की तरह छ्प जाता है।
चाहे जितने बरस,उसने अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हुए बिता दिया मगर फिर भी अतीत के उस एक भूले हुए क्षण के लिए उसे क्षमादान नहीं मिलता और वो कटघरे में खड़ी कर दी जाती है।
सबसे दुःखद यह रहा कि उसका पति,श्री,जिसे उसने बेइंतहा प्यार दिया,उसका इतना ख़याल रखा कि उसने शोहरत की बुलंदी को छू लिया,उसी ने उसे,चार लोगों के सामने अपराधियों के समान खड़ा कर दिया और अपना स्पष्टीकरण देने को कहा,उन चार लोगों में एक वह भी था जिसे बिल्कुल नहीं होना चाहिए था–उसका बेटा।
नायिका गिड़गिड़ाती भी है,लेकिन वह नहीं मानता।उसका उद्देश्य नायिका का स्पष्टीकरण लेना नहीं था,बल्कि चंद लोगों की नज़रों में उसे गिराना था।
यह कैसा जीवन साथी जो अपने साथी के किसी एक राज़ का सहभागी नहीं बन सकता,बिना उसे प्रताड़ित किए।
अंततः जो निर्णय नायिका के द्वारा लिया गया,सराहनीय था।सही था कि उसने अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को बखूबी निभा लिया था,अब केवल एक अस्तित्व की लड़ाई ही शेष है।
यह लड़ाई समस्त स्त्री जाति के लिए वांछनीय है,
धन्यवाद।

206 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Shweta Soni
View all

You may also like these posts

दोहा पंचक. . . . काल
दोहा पंचक. . . . काल
sushil sarna
ख्वाब सुलग रहें है... जल जाएंगे इक रोज
ख्वाब सुलग रहें है... जल जाएंगे इक रोज
सिद्धार्थ गोरखपुरी
पेजर ब्लास्ट - हम सब मौत के साये में
पेजर ब्लास्ट - हम सब मौत के साये में
Shivkumar Bilagrami
कैसे एतबार करें।
कैसे एतबार करें।
Kumar Kalhans
प्रार्थना - जीवन में सदा परिणाम उस प्रकार नहीं आते जैसा कि ह
प्रार्थना - जीवन में सदा परिणाम उस प्रकार नहीं आते जैसा कि ह
ललकार भारद्वाज
स्त्री:-
स्त्री:-
Vivek Mishra
पेंशन पर कविता
पेंशन पर कविता
गुमनाम 'बाबा'
कुछ रूबाइयाँ...
कुछ रूबाइयाँ...
आर.एस. 'प्रीतम'
दुनिया में आने में देरी
दुनिया में आने में देरी
Shekhar Chandra Mitra
जिंदगी
जिंदगी
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
एक दीप हर रोज जले....!
एक दीप हर रोज जले....!
VEDANTA PATEL
*राम-राम कहकर ही पूछा, सदा परस्पर हाल (मुक्तक)*
*राम-राम कहकर ही पूछा, सदा परस्पर हाल (मुक्तक)*
Ravi Prakash
राम का न्याय
राम का न्याय
Shashi Mahajan
2793. *पूर्णिका*
2793. *पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
शाम
शाम
Dr.Pratibha Prakash
बह्र ## 2122 2122 2122 212 फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन काफिया ## चुप्पियाँ (इयाँ) रदीफ़ ## बिना रदीफ़
बह्र ## 2122 2122 2122 212 फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन काफिया ## चुप्पियाँ (इयाँ) रदीफ़ ## बिना रदीफ़
Neelam Sharma
राह कोई नयी-सी बनाते चलो।
राह कोई नयी-सी बनाते चलो।
लक्ष्मी सिंह
जो बीत गया है उसे भुला नहीं पाते हैं
जो बीत गया है उसे भुला नहीं पाते हैं
सोनम पुनीत दुबे "सौम्या"
SHER
SHER
*प्रणय प्रभात*
बेटियां।
बेटियां।
Taj Mohammad
न्यूज़
न्यूज़
rajesh Purohit
sp57 हमने कसम खाई थी/ अपने ही बुने जाल में
sp57 हमने कसम खाई थी/ अपने ही बुने जाल में
Manoj Shrivastava
तू है तसुव्वर में तो ए खुदा !
तू है तसुव्वर में तो ए खुदा !
ओनिका सेतिया 'अनु '
"किनारे से"
Dr. Kishan tandon kranti
तू देख, मेरा कृष्णा आ गया!
तू देख, मेरा कृष्णा आ गया!
Bindesh kumar jha
सच की माया
सच की माया
Lovi Mishra
नूतन संरचना
नूतन संरचना
Mrs PUSHPA SHARMA {पुष्पा शर्मा अपराजिता}
ग़ज़ल
ग़ज़ल
मिथलेश सिंह"मिलिंद"
মহাদেবের কবিতা
মহাদেবের কবিতা
Arghyadeep Chakraborty
हमको भी अपनी मनमानी करने दो
हमको भी अपनी मनमानी करने दो
Dr Archana Gupta
Loading...