शहीद की पत्नी
शहीद की पत्नी
(शहीद का पार्थिव शरीर घर में आने पर उसकी पत्नी का रुदन गीत)
तुम आओगे घर आँगन में
मैंने द्वार सजा के रखा था
तुम आ भी गए घर आँगन में
पर क्यूँ हार चढ़ाए रखा था?
तुम थे जब वृहत पहाड़ो में
हम तो थे घर-गलियारों में
तुम हिम खंडों से दबे हुए
हम घर में अनल का ताप लिए।
नहीं गुजरा अब तक एक बसंत
ना होली हमनें मनाई संग
तुम इतनी जल्दी दौड़ गए
मुझकों क्यों अकेली छोड़ गए?
कुछ सपने थे मेरे अपने
संग तेरे थे पूरे करने
सपना था सपना टूट गया
पर अपना भी क्यूँ रूठ गया!
इक इक पल मुश्किल से काटा
मैंने तो घर के कोने में
पर इससे बड़ा दुःख क्या होगा
जो मिला है तुमको खोने में।
जब वचन दिए तूने मुझकों
जीवन भर साथ निभाओगे
चले गए तुम हो जहाँ अब
भला मुझकों कब बुलाओगे?
( नन्दलाल सुथार”राही” , जैसलमेर, राजस्थान)