शहर में नकाबधारी
इस जगत में,
चारो तरफ झुठ ही झुठ है,
सत्य को,
पहचाने कैसे हम ?
नकाबधारीयों की दबदबा है सहर में
किस–किस को ऐना देखाएँ हम ?
हर जगह मौसम के भूमिका मे हैं लोग
ऋतुओं को
कैसे समझे हम?
किताबों की पन्नों सी मुखौटा लगाए हैं लोग,
सभी को कैसे उघारे हम ?
हर तरफ असली चेहरा प्रदर्शनी मे,
पेट में दाँत होनेवालों को,
कैसे पहचाने हम ?
बहुरुपीयों के भीड समाज मे,
सभी को कैसे पढे हम ?
पास–पडोस मे हैं स्वार्थीयों के जमघट
निष्ठावान को,
कैसे चयन करें हम ,
गिरगिट सी पग–पग रंग बदलनेवालों को,
किस तरह वर्गीकरण करें हम ?
#दिनेश_यादव
काठमाण्डू (नेपाल)
#हिन्दी_कविता , #हिन्दी_साहित्य