“शब्द”
“शब्द”
शब्द सिसकते नहीं
जमकर बोलते हैं,
हृदय-पट में रह-रह कर
करारी चोट करते हैं।
वो कभी मन को
पीड़ा से भर देते हैं,
तो कभी इंसान को
नव – जीवन देते हैं।
“शब्द”
शब्द सिसकते नहीं
जमकर बोलते हैं,
हृदय-पट में रह-रह कर
करारी चोट करते हैं।
वो कभी मन को
पीड़ा से भर देते हैं,
तो कभी इंसान को
नव – जीवन देते हैं।