शब्द नही है पिता जी की व्याख्या करने को।
सबको प्रेम डोर के सूत्र से बांधे रखते थे।
वह परिवार में पिता थे हमारे जो ऐसा करते थे।।1।।
हम सारे भाई अपने अपने पैरों पे खड़े थे।
पर पिता आज भी हमें चलना सिखाया करते थे।।2।।
वर्षों पहले काल ने मां को निगल लिया था।
बिना कुछ कहे वह विरह का दुख सहा करते थे।।3।।
ह्रदय उनका प्रेम में तो समंदर से गहरा था।
दुखी होकर भी वो सबको बड़ा हंसाया करते थे।।4।।
शब्द नही है पिता जी की व्याख्या करने को।
भावों की असहनीय पीड़ा में मुस्कुराया करते थे।।5।।
कभी कुछ भी ना कहा स्वयं के लिए उन्होंने।
ईश्वर तुल्य पिता हमारे यूं जीवन जिया करते थे।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ