“शब्दों का व्यापारी”
ये लेखन तो इक बाजार है,
यहाँ शब्दों का व्यापार है।
सुलझ गए तो बेड़ापार,
उलझ गए तो मझधार है।
लफ्जों के सौगात से कितने सपने साकार है,
वर्ना डूबने को तो सबकी नैय्या तैयार है।
कहकशें, मुहावरों की यहाँ भरमार है,
देखो यहाँ नक़ल की जीत और असल की हार है।
मैं भी इस दरिया की इक बूँद हूँ,
मुझे तो मिलने वाले समंदर से भी प्यार है।
कहता है इंतहा इंसान कि,
अल्तमस नहीं कोई लफ्जों का सौदागर,
उन्हें क्या पता कि ज़माने को,
बस इनका ही इंतज़ार है।
आँसू तो सूखे पड़ गए हैं इस जहाँ में सभी के,
अभी तक बस उनकी शिफत में ही नमी बरकरार है।
इतिहास से भविष्य तक इनकी कलम में,
इनपे तो केवल लेखन का खुमार है।
क्रांति की कई लहरों को इसने देखा है,
जहाँ दुनियाँ की भीड़ तार-तार है।
बंदिशें कोई रोक नहीं सकता इनकी उड़ान को,
ये तो बुलंदियों के आसमां पर सवार है।
रुख की लकीरें पढ़ सकता है ये,
रूह की नफरतों से लड़ सकता है ये।
बाँकी दुनियाँ की बातें तो बेवजह बेकार है,
शब्दों से जो खेले वही तो असली रचनाकार है।
वही तो असली रचनाकार है।।
✍️हेमंत पराशर✍️