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8 Feb 2024 · 1 min read

दुर्बल तुम केवल मन से हो

दुर्बल तुम केवल मन से हो
_____
दुख का अपने कर के विलाप,
मत हालातों को गाली दो।
अपने आहत रीते मन को,
मत व्यर्थ दिलासा खाली दो।
है घड़ी बीतती जाती यह,
तुम पर है बनते क्या तुम हो
दुर्बल तुम केवल मन से हो।

जग में जीवन के सौ क्षण है
तुम क्यों मृत्यु ही बीन रहे
अपने ही मन की चेतनता
क्यों यों शंकित हो छीन रहे
यह बर्बरता किस विधि आई
शोषित तुम केवल स्वयं से हो
दुर्बल तुम केवल मन से हो।

तुम छिप जाना चाहो जग से
जबकि जग तुमको ढूंढ़ रहा
है वक़्त भी स्वयं सुभीता बन
जयमाला तेरी गूंध रहा..
क्यों घोंट रहे स्वर सपनो का
तुम विचलित किस गर्जन से हो..
दुर्बल तुम केवल मन से हो

क्या भूल गए उस बाती को,
जो तुम सुलगाकर आए थे।
अपने अपनों के सपनों का
जो दिया जला कर आए थे l
अनभिज्ञ थे क्या ना सोचा था
तू फां को भी सहना होगा।
एक दीप जलाने की खातिर,
अंधियारों में रहना होगा।
जब ओखल में सर डाल चुके,
फिर नाहक क्यों उलझन में हो
दुर्बल तुम केवल मन से हो
दुर्बल तुम केवल मन से हो

©~ Priya Maithil

Language: Hindi
1 Like · 64 Views
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