व्यक्तिगत अभिव्यक्ति
बहुत कुछ सोच समझकर कहना चाहूं तो ज़ुबान पर ताले पड़ जाते हैं ,
अव्यक्त भावनाओं के स्वर अंतःकरण में डोलते रहते व्यक्त नहीं हो पाते हैं ,
लगता है व्यक्तिगत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सामूहिक मानसिकता की जंजीरों में जकड़ी होकर रह गई है ,
छटपटाती हुई बेचैन इन जंजीरों को तोड़कर मुखर होने का साहस जुटा नही पा रही है ,
मानसिक दासता का भाव हृदय को साल रहा है ,
आत्मसम्मान को ठेस पहुंचा कर,
स्वअस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह प्रस्तुत कर ,
निरर्थक जीवन का भाव उत्पन्न कर रहा है ,
लगता है खोए आत्मविश्वास को जगाना होगा ,
मानसिक गुलामी की जंजीरों को तोड़ कर, व्यक्तिगत अभिव्यक्ति के लिए संघर्ष करना होगा,
वरना स्वअस्तित्व सामूहिक मानसिकता के हाथों कठपुतली बनकर रह जाएगा,
फिर जीवनपर्यंत सामूहिक मानसिकता की गुलामी से उबर ना पाएगा।