वो लम्हे जैसे एक हज़ार साल की रवानी थी
वो दिन, वो लम्हे जैसे एक हज़ार साल की रवानी थी,
हर सांस में बसी, इक इश्क़ की रवायती कहानी थी।
बिना किसी तशवीश के, हम थे बस फ़ितरत के पहलू में,
ज़िंदगी की हर सूरत, इश्क़ की मेहरबानी थी।
हर पल था, मानो एक नया अफ़साना लिखा जा रहा हो,
इक-दूसरे के इश्क़ में, हम थे यैसे,जैसे कोई फ़साना हो।
न क़ायदों की बेड़ियाँ, न रस्मों की बंदिशें थीं,
हमारी मोहब्बत के सफ़र में, वक़्त की कोई निशानी थी।
वो ख़ुशी, जो फ़िक्र और दुनिया के शोर से परे थी,
इक सुकून, जो हम दोनों की रूहों में भरी थी।
जीना बस वही था, जहाँ दिल की सुन ली जाए,
इक पल का बंधन, जो सदियों तक रिहानी थी।
अब जब उन लम्हों को याद करता हूँ,
तो हर हक़ीक़त मुझसे यूँ रूबरू हो जाती है।
बंधनों से आज़ाद, बेफ़िक्र ज़िंदगी का वो हाल,
वो दिन, जैसे इश्क़ की सबसे हसीं कहानी थी।
वो पल, वो दिन, हमें बता गए एक हक़ की राह,
कि असल जीना वही है, जहाँ इश्क़ की हो चाह।
हमने उन पलों को अपने दिल में सदा के लिए बसाया,
और पाया वो सुख, जो हर बंदिश से पुरानी थी।