वो चेहरा
सुमन सा सुंदर , मोह सा मोहक
प्रेम सा प्रिय, भाव सा भावुक
स्पंदन सा कंपित , रूदन सा पीड़ित
स्मृति सा स्मारक वो चेहरा …
मुझे देख छुप जाता था ,
समीप होता तो लजा जाता था |
कुछ कहता नहीं था पर कहता था ,
नीरव था फिर भी बड़बोला था ,
जीवन सा जीवित , चिंतन सा चिंतित,
स्मृति सा स्मारक वो चेहरा .. |
मोहक थी नयनों की गहराई ,
रोचक थी अधरों की गोलाई ,
प्रिय था धरा सा वो मस्तिष्क भी ,
प्रिय था कल्पना सा वो कपोल भी ,
पार्थक्य सा प्रथक , पतन सा पतित
स्मृति सा स्मारक वो चेहरा …|
मध्यमा ने मेरी छुआ था कपोलों को उसके
छुआ था अधरो ने मेरे अधरों को उसके
तब कंपित था.. आतंकित था
भयभीत था.. लज्जित भी था
स्वप्न सा स्वप्निल, आतंक सा आतंकित
स्मृति सा स्मारक वो चेहरा |