वो आज़ाद हमारा है
गले जनेऊ, मूछों पे हाॅंथ
कमर में पिस्टल रहता था
देश भक्ति जिसके नस-नस में
लहू बन दौड़ा करता था
वो आज़ाद हमारा था
वो आज़ाद हमारा है।
दुश्मन में वो बात कहाॅं थी
‘शेर’ को जो तनिक डरा जाता,
चंदशेखर के मूछों को
हल्का सा भी झुका जाता
माँ का सच्चा लाल था वो
देश भक्ति का अनोखा मिसाल था वो
यारों का अनोख़ा यार था वो
मलखंभ से पहलवान था वो
दुश्मनों को जिसे धूल में मिलाना था
हाॅं … वो आज़ाद हमारा था
हाॅं … वो आज़ाद हमारा है
बिस्मिल-अशफाक से जिसका गहरा याराना था
फांसी के फंदे से जिसे “भगत” को जिंदा बचाना था
दुश्मन को पैरों में ला
अंबर पे भी जिसे गुर्राना था
आज़ादी के परचम को
देश के हर चप्पे – चप्पे में जिसे लहराना था
वो आज़ाद हमारा था
वो आज़ाद हमारा है।
चंद्रशेखर कहो या कह दो ‘आज़ाद’ फर्क क्या ही पर जाता है
देश भक्तों की टोली में बस
वो आज़ाद ही जाना जाता है।
याद करो उस बीर को जो
बरबस ही ये कह जाता था,
आज़ाद हूँ मैं
आज़ाद मरूंगा
दुश्मन जिन्दा छूने नही पाएगा
मृत देह ही मेरा अपने साथ वो ले जायेगा
इलाहबाद के अल्फ्रेड पार्क में
हुआ वही जो पहले से ही वो गुन गुनाता था
एक आज़ाद की खातिर सोचो
फिरंगी पूरी सेना लेकर आया था
दुश्मन छूने न पाए जिंदा जिस्म को
बस इसलिए कनपट्टी पर पिस्टल का घोड़ा दवाया था
झुक कर आखरी बार माँ को शीश से लगया था
शेर कहो या कह दो आज़ाद फर्क क्या ही पर जाता है
उसके मृत देह ने भी सोचो दुश्मन को कुछ मिनटों तक भरमाया था।
देशभक्ति का असली मतलब हमको सिखलाने वाला
इंकलाब का परचम थामे
इंकलाबी आज़ाद हमारा था,
वो आज़ाद हमारा था
वो आज़ाद हमारा है
वो कल के नभ पर भी चमकता सूरज था
आज भी वो नाम उजियारा है …
~ सिद्धार्थ