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2 Mar 2024 · 1 min read

Gatha ek naari ki

सुनो सुनो तुम गाथा एक नारी की,
बचपन में जिसका खिलौना तलवार व घुड़ सवारी थी,
आंखों में तेज व लफ्जों पर आजादी की चिंगारी थी,
गुलामी की उन जंजीरों को तोड़ जिसने भारत को स्वतंत्र बनाने की ठानी थी,
चल नहीं कोई जोर दुश्मन का उसके आगे जब उसने एकता की मुट्ठी बांधी थी,
सफल हुआ संघर्ष उसका अब भारत छोड़ अंग्रेजों की जाने की बारी थी,
खदेड़ने की उनको जंग अभी जारी थी,
आजादी की लपटे इस बार कुछ भारी थी क्योंकि स्वतंत्रता अभी आनी बाकी थी,
बिखरे हुए फूलों की एक माला बननी अभी बाकी थी,
तोड़ गुलामी की जंजीरों को खुली हवा में सांस लेनी अभी बाकी थी,
बिखरी हुई चिंगारी की लपटों में उनकी समाधि बसनी अभी बाकी थी,
हिंदुस्तान आजाद था और आजाद ही रहेगा यह बात जुबां पर हजारों के थी,
दिलों में आजादी का दीप जलाने वाली कोई साधारण नारी नहीं यारों वो अपनी ही झांसी वाली रानी थी!!!

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