“वैराग्य का द्वार”
पता नहीं
था वह विधि का विधान,
कि उस साधु की सिद्धि
या फिर उसका वृहत ज्ञान।
साधु ने दिया
राजा भर्तृहरि को अमृत फल,
जिससे ग्रहण करके
राजा हो जाये चिरंजीव
आ न सके कभी मृत्यु-पल।
मगर राजा ने दे दिया
अपनी रानी को वह फल
रानी ने प्रेमी को
प्रेमी ने गणिका को दिया फल
फिर गणिका के हाथ से
जब वही अमृत-फल
राजा को फिर से मिल गया,
राजा भर्तृहरि के लिए
वैराग्य का द्वार खुल गया।
-डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
भारत भूषण सम्मान 2022-23 प्राप्तकर्ता।