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22 May 2024 · 1 min read

भावनात्मक निर्भरता

भावनात्मक निर्भर होना क्यों बुरा है,
विश्वास करना फिर क्यों बुरा है।

नहीं चाहता कोई अंधेरों को बाँटना,
रोशनी की तलाश करना क्या बुरा है।

हर तरफ़ है कोहरे से लिपटी ज़िंदगी,
अंतर्मुखी ही होना फिर क्यों बुरा है।

संजीदा होकर अनुभवों की मंजूषा समेटे,
संवेदनाएं परिमार्जित करना फिर क्यों बुरा है।

अभिशप्त हो जाएँ जब प्यार की राहें,
संज्ञा शून्य ही होना फिर क्यों बुरा है।

बरसाती नदी तोड़ने लगे जब कूल किनारे,
महत्वाकांक्षाओं को बाँधना फिर क्यों बुरा है।

एक ही तीली चाहिए जब विस्फोट के लिए,
अवधारणाएँ बदल लेना फिर क्यों बुरा है।

डॉ दवीना अमर ठकराल’देविका’

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