वृक्ष पुकार
जीवन मुझमे भी है तुम जैसा,
शस्त्र सीने पर मेरे ताड़ते हो, क्यों?
पुकारता है वृक्ष ,
सुन लो मेरी पुकार।
जी रहा हूँ मैं ,
बड़ रहा है आकार।
देगें मुझे जीने तुम अगर,
काम आऊँगा मैं कई प्रकार।
अल्पमृत्यु , कौन चाहे।
पूछता है वृक्ष?
समझते नही तुम मेरी पीड़ा, क्यों?
पाला है प्रकृती ने मुझे भी,
अपने हिस्से का,
कुछ अन्न- जल देकर।
दिया है मुझे भी एक स्वतंत्र, वास।
मत कर, हे मानव !
मुझे मारने का दु:साहस।
मेरी छाती पर तुम ये छुरा,
घोंपते हो, क्यों?
पुकारता है वृक्ष,
अब तो सुन लो मेरी पुकार।
✍️संजय कुमार संजू