वीरो की भूमि
हुई धरा ये रिक्त नहीं, वीरों से अभी ये मुक्त नहीं।
कहने को अभी ये खोए हैं, बस चिर निंद्रा में सोए हैं।।
ये महाराणा के प्रताप हैं, ये वीर शिवा की छाप हैं।
ये पृथ्वी जैसा दिल हैं रखते, ये मानवता की मिसाल हैं।।
ये चंद्रगुप्त के शौर्य हैं, ये अशोक महान के मौर्य हैं।
ये राजा भोज की खोजें हैं, ये कृष्णदेव की मोजे हैं।।
ये चाणक्य की नीति हैं, ये अमिटशौर्य अनुभूति हैं।
ये आर्यभट्ट का ज्ञान हैं, ये भारद्वाज का विज्ञान हैं।।
ये गुरुओं की संताने हैं, ये भारत की पहचाने हैं।
ये बाल्मीकि का शील हैं, ये हरिजन सहनशील हैं।।
ये हिंसा से कतराते हैं, पर पीठ नहीं दिखलाते हैं।
ये रण में जब आ जाए तो, अच्छे-अच्छे घबराते हैं।।
ये कहने को हैं अलग-अलग, पर एक माला के मोती हैं।
ये संत कबीर और रविदास के, बिखरे सच्चे मोती हैं।।
ये सूरजमल का इतिहास हैं, ये संभाजी का विश्वास हैं।
ये मिहिर भोज की आन हैं, ये खुद में ही शमशान हैं।।
ये चार वर्ण बस नाम के हैं, आर्यों की संतान के हैं।
ये वर्ण व्यवस्था काम की हैं, अपने ही पहचान की हैं।।
ये हमको जो भटकाते हैं, वे भूल सदा ये जाते हैं।
ये वर्ण व्यवस्था सब में हैं, बस हम मूर्ख बन जाते हैं।।
अब समय आ गया जगने का, गले लगाकर रखने का।
अब पहरेदारी बहुत हुई, अब उनसे यारी बहुत हुई।।
अब अपना भी प्रचार करो, भगवे को तुम तैयार करो।
अब देश धर्म पर चलना हैं, दुश्मन को पहले मरना हैं।।
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“ललकार भारद्वाज”