वीरांगना गौराबाई
एक गरीब विधवा की शहादत
वीरांगना गौराबाई
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सन् बयालीस का सत्याग्रह,
तेईस अगस्त सितम ढाया ।
बंदूकें चली चीचली में,
माहौल इस तरह गरमाया ।।
जब मंशाराम जसाठी ने,
सीने पै गोलियाँ खाईं हैं ।
यह दृश्य देख होते शहीद ,
कणकण आँखें भर आईं हैं ।1
तन प्राणहीन छलनी सीना,
सपने सब बेउम्मीद हुए।
लख मनीराम हरिजन दौड़ा,
जब मंशाराम शहीद हुए ।।
विकराल काल सम क्रोध भरा,
अरिदल पर आँख तरेरी है ।
तब वीर बजाई मंशा की,
लाठी लेकर रणभेरी है।2
वह था मंशा का यार बड़ा ही,
जंग बाज जोशीला था ।
वह देशभक्ति के अमिट रंग में,
रंगा जवान रंगीला था ।
लाठी ले रण में कूद पड़ा,
बंदूकें फिर शरमाईं हैं ।
चल रही दनादन किंतु ,
वीर को जरा नहीं छू पाईं हैं।3
थी लगी हुई लाठी पल पल,
दुश्मन से धरा पाटने को ।
इतने में गौराबाई वहाँ से,
निकली घास काटने को ।
मंशा पर नजर पड़ी उसकी,
फिर मनीराम लड़ते देखा।
आँखों में खून उतर आया,
खिच गई एक भीषण रेखा।4
मंशा था उसे पुत्र जैसा,
मन रोने को तो होता था।
कैसे रोती वह समर सिंधु में,
लगा रहा जब गोता था ।।
कम्मर खोंसा हँसिया निकाल,
क्षण टूट पड़ी मर्दानी थी ।
गौरा फिर गौरा नहीं रही,
गौरा बन गई भवानी थी।5
माता काली ने युद्ध भूमि में,
जैसे खंग उठाया था ।
हो रक्त बीज का नाश ,
भयानक भारी भेष बनाया था।
गौराबाई का हँसिया भी,
काली के खंग सरीखा था ।
वह टूट पड़ी बैरी दल पर ,
हर एक सिपाही चीखा था।6
यह सोच रखा नारी अबला,
संग्राम कहाँ कर पाएगी।
सुन बंदूकों की आवाजें,
भागेगी व डर जाएगी।।
यह नारी नहीं, नहीं अबला,
यह मौत समान घेरनी है।
हमने समझा था गाय इसे,
यह तो खूँखार शेरनी है।7
हँसिया चल पड़ा खेत में यों,
रिपुदल के सैनिक दंग हुए ।
कई कई घायल, कई अंग भंग,
कई जंग किये भदरंग हुए ।।
गौरा के साथ साथ मिलकर,
लाठी की कला दिखाता था।
आगे बढ़ बढ़कर मनीराम,
गौरा को साफ बचाता था।8
जख्मी अधमरे सिपाही हो,
दोनों पर मानों आग हुए।
घेरा दोनों को अलग अलग,
सबके समान दो भाग हुए।
दोनों को मार गिराने ही,
अँग्रेजी शासक व्यूह रचा।
लाठी के बल पर मनीराम,
उन बंदूकों से साफ बचा।9
दूजे घेरे में गौरा ने ,
घिरकर भी धूम मचाई है।
लगता था सबने मिलकर भी,
गौरा से मुँह की खाई है ।।
इसओर लपकउसओरझपक,
गौरा का हँसिया चलता था।
वह छपकछपक कर छिनछिन में,
पीने को खून मचलता था।10
हँसिये का जोश जुनून देख,
बंदूकें रह रह शर्मातीं ।
फिर हार हारकर बार बार ,
माहौल वहाँ का गर्मातीं।
धीरे-धीरे कम पड़ा तेल ,
गौरा की जीवन बाती में ।
बस तभी समायीं एक साथ,
कई उसे गोलियाँ छाती में।11
उसके बारे मे सही कोई भी,
बता न पाया वह क्या थी ।
मंशा शहीद था ताम्रकार,
गौराबाई तो कतिया थी ।।
फिर उसे देख कर गौरा ने,
इतनी क्यों लड़ी लड़ाई है ।
लड़ते लड़ते हँसते हँसते,
क्यों अपनी जान गँवाई है।12
मंशा तो भतीजा लगता था,
कहकर पुकारता था काकी।
काकी ने अपने प्राण दिये,
रिश्ते की मर्यादा राखी।।
अक्सर कहती थी ओ बेटा,
जोशीले भाषण देता है।
तेरी बातें सुन देश भक्ति में,
हिया हिलोरें लेता है ।13
मैं पढ़ी लिखी तो नहीं मगर,
झंडा तो लहरा सकती हूँ ।
अँग्रेजों भारत छोड़ो के,
स्वर को भी गहरा सकती हूँ ।
ले जायँ जेल कर गिरफ्तार,
मैं जरा न डरने वाली हूँ ।
दसबीस लड़ें तो भी मुकाबला,
डटकर करने वाली हूँ ।14
घर नहीं कोई जिम्मेदारी,
खाने पीने की जिकर नहीं ।
आजादी पाने की इच्छा,
जीने मरने की फिकर नहीं।
सब देश भक्ति के भाव तेरे,
कहने सुनने में अच्छे हैं ।
पर तूने कभी न सोचा है,
घर में दो छोटे बच्चे हैं।15
इतना जादा न जोश जता,
जिससे कि बात बिगड़ जाये।
सब नेताओं से जादा तू,
गोरों की नजर में गड़ जाये।
बोला था चिल्लाकर मंशा,
काकी ऐसा क्यों कहती हो?
घर द्वार सभी से देश बड़ा,
तुम किन भावों में बहती हो।16
छोटे छोटे से बच्चे हैं,
यह सोच जनाती हो क्यों तुम।
अपने निर्भीक लड़ाके को,
कमजोर बनाती हो क्यों तुम।
मैं समझ गई न मानेगा,
बचपन से बड़ा हठीला है ।
न रुक सकता,न झुक सकता,
ये देशभक्त गर्वीला है ।17
तो सुन मेरा भी वादा है,
तेरा न साथ मैं छोड़ूँगी,
बचपन से गोद खिलाया है,
संकट में मुख न मोड़ूँगी।
छाया बनकर पीछे पीछे,
मैं तेरा हाथ बटाउँगी।
रख आन बान तेरी बेटा,
दुश्मन का मान घटाउँगी।18
है धन्य गाँव की रीति प्रीति,
रिश्तों में जुड़ा है हर नाता।
इसमें न कोई जाति पांति,
न ऊँच नीच आड़े आता ।
इस संस्कृति को नमन,
यही गाथा भारत माता की है।
कतिया होकर गौराबाई,
उस मंशाराम की काकी है।19
मुँह बोले रिश्ते के बंधन,
कितने अटूट हैं ऊँचे हैं ।
पद पैसा जाति बँधे नाते,
इनके आगे सब छूँछे हैं।
वह मातृभूमि कीबलिवेदी पर,
शीश चढ़ा कर चली गई ।
वह विजयी विश्व तिरंगे का,
सम्मान बढ़ाकर चली गई।20
वह दुर्गावती लक्ष्मी बाई ,
को दुहराकर चली गई।
माटी के कण कण का पावन,
इतिहास बनाकर चली गई ।
सम्पूर्ण जिले में अमित अनूठा,
नाम बनाकर चली गयी ।
वह ग्राम चीचली को तीर्थ का,
धाम बना कर चली गयी ।21
उसके चरणों में बार बार,
श्रद्धा से शीश झुकाता हूँ ।
कविता के सुमन समर्पित कर,
यह सोच सोच रह जाता हूँ ।
दे प्राण दिलाई आजादी,
हमने तो उनका यश गाया ।
इस आजादी से मंशा ने,
गौराबाई ने क्या पाया? 22
गणतंत्र दिवस की
हार्दिक शुभकामनाएं ।
भारत माता की जय ।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
26/1/2021