वीरांगना अवंती बाई
वीरांगना अवंती बाई
××××÷÷×××××××
1
जब भारत के चप्पे-चप्पे,
शासक बने फिरंगी थे ।
धरा धर्म एकता प्रेम के,
नाशक बने फिरंगी थे ।
तब उनसे लोहा लेने को,
भूतल पर दुर्गा आई।
पिता जुझार सिंह हुए साथ,
माता जिसकी कृष्णाबाई।
सिवनी जिला ग्राम मनकेडी,
घर घर खुशियाँ थीं भारी।
कन्या नाम अवंती बाई,
गूंजी ज्यों ही किलकारी
था इकतीस अठारह सौ सन,
माह अगस्त सुहाई है।
दुर्गा जैसी युद्ध भूमि में
लड़ी अवंती बाई है।
2
ठाट जमींदारी के घर थे,
सुख सुविधायें पाने में।
बचपन से हो गई निपुण,
कन्या तलवार चलाने में।
विक्रमादित्य संग में ब्याही,
बनी रामगढ़ की रानी।
लोधी वंश अंश की गरिमा,
कदम कदम पर पहचानी
राजा हुए अस्वस्थ राज की,
बागडोर रानी थामी।
आने न दी संचालन में,
किसी तरह की भी खामी।
अँग्रेजी शासक ने कर दी
मौका देख चढाई है।
दुर्गा जैसी युद्ध भूमि में
लड़ी अवंती बाई है।
3
जुल्म सितम अन्याय ना सहे,
अत्याचार विरोधी है।
धरा धर्म की रक्षा करने,
वाला ही तो लोधी है।
राजा हैं अस्वस्थ राज के,
पूरे काज करूँगी मैं।
नहीं रामगढ़ दूँगी अपना,
करके युद्ध मरूंगी मैं।
रानी ने तलवार उठाई,
लेकर थोड़ी सी सेना।
टूट पड़ी गिद्धों के दल पर,
रणचंडी बनकर मैना।
खाकर हार भगा डलहौजी,
हाहाकार मचाई है।
दुर्गा जैसी युद्ध भूमि में,
लड़ी अवंती बाई है।
4
झेल नहीं पाये राजाजी,
अधिक दिनों बीमारी को।
लावारिश हो गया रामगढ़,
समय की इस लाचारी को।
थे नाबालिग दोनों बेटे,
जिनको राज चलाना था ।
भेजा गोरे अधिकारी को,
लेकर यही बहाना था ।
ज्यों ही आकर राज्य हड़पने,
अफसर रुतबा झाड़ा है
दिया खदेड़ उसे रानी ने,
कर ललकार लताड़ा है ।
राज्य व्यवस्था अपने हाथों,
लेकर स्वयं चलाई है ।
दुर्गा जैसी युद्ध भूमि में,
लड़ी अवंती बाई है।
5
राजा हुए स्वर्गवासी तो,
शोक रामगढ़ में छाया।
दुष्ट कमिश्नर ऐसे अवसर,
पर भी हमला करवाया,
रानी नहीं चूड़ियाँ तोड़ीं,
हमलावरों के सिर तोड़े।
भागे उल्टे पांव गधे बन,
शासन के भेजे घोड़े ।
करके जंग भुआ बिछिया में,
धूल चटाई गोरों को।
घुघरी,और मंडला तक में,
मजा चखाई गोरों को।
नरसिंहपुर मंडला जबलपुर,
रानी धूम मचाई है ।
दुर्गा जैसी युद्ध भूमि में,
लड़ी अवंती बाई है ।
6
रचा कुचक्र बक्र दृष्टि कर,
देवहारी में घेरा है ।
रानी समझ न पाई अचानक,
पड़ा काल का फेरा है।
डरी नहीं न झिझकी किंचित,
लिये हौसला मरदानी ।
काट काट नर मुंड कर दिया,
दुश्मन को पानी पानी।
किये वार पीछे से अरिदल,
फिर भी लड़ी कड़ाई से
तनिक नहीं घबड़ाई रानी,
चहुँ दिश घिरी लड़ाई से ।
निकट समय देखा अपने पर,
खुद तलवार चलाई है।
दुर्गा जैसी युद्ध भूमि में लड़ी
अवंती बाई है।
7
केवल लोधी वंश नहीं वह,
भारत माँ की बेटी थी।
देश प्रेम की थी ज्वाला वह,
नहीं किसी से हेटी थी।
हो कितना भी कठिन निशाना,
नहीं चूकने वाली थी।
सोये हुए गोंडवाने में,
प्राण फूंकने वाली थी।
नारी होकर गदर मचाकर,
नाम देश में कमा गई।
स्वतंत्रता की ज्योति जलाकर,
महाज्योति में समा गई।
रानी तेरे ऋणी आज हम,
यह यश गाथा गाई है।
दुर्गा जैसी युद्ध भूमि में,
लड़ी अवंती बाई है।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
17/2/24