विषय -धुंध
विषय -धुंध
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इस सफेदी लिए धुंध का,
अजब ही नजारा है।
दूर तक दिखता नहीं,
कोई भी किनारा है।।
ये सर्द सुबह धुंध भरी,
सब कुछ मानो जमा जा रहा।
धरा ने ओढ़ी चादर धुंध की,
कुछ भी नजर नहीं आ रहा।।
ऊँची मीनार, इमारतें, वृक्ष सभी,
धुंध में सभी छुप जाते हैं।
जब छट जाती धुंँध तनिक,
तो सूर्य धुंध का घूंँघट उठाता है।।
धरा में जब सुनहरी धूप आती,
तब कोलाहल हो जाता है।
कितनी प्यारी लगती यह धूप,
जब सर्दी का मौसम आता है!
इस सफेद धुंध का,
अजब ही नजारा है!!
सुषमा सिंह*उर्मि,,