विलंब न कर आरंभ कर
विलंब न कर आरम्भ कर
रुक न कहीं थककर
प्राणों को स्फूर्ति से भरकर
आलस निराशा छोड़ कर
थम ना विराम कर
प्रयत्न तू अपार कर
सिंह सी दहाड़ कर
भीषण हुँकार कर
गर्जना प्रचंड कर
सपनों को सहेजकर
कर्म को पुकार कर
रास्ता न छोड़कर
तेज गति से दौड़कर
हार से न डरकर
अकेला निकल पड़
डर को हटाकर
विश्वास को न छोड़कर
कर्त्तव्य से मुख न मोड़कर
अश्व सा तेज दौड़कर
पर्वतों सा अड़कर
समुद्र सा बहाव कर
अविरल प्रवाह कर
डटकर न झुककर
चल सीना तानकर
अहं को सुलाकर
स्वयमं को जगाकर
न मस्तक झुकाकर
रख उसे उठाकर
बिजली सी भालपर
धनुष साहस का तानकर
विश्वास की प्रत्यंचा चढ़ाकर
लक्ष्य रख अभेद कर
चला तीर बाधा को भेदकर
पराजय को छेदकर
अंधेरे को चीरकर
निश्चय को ठानकर
अड़चनों को पारकर
अंनत एक नांदकर
उल्लास रख बांधकर
कार्य कर मानकर
कर्तव्य को जानकर
निर्भीक सा गमनकर
खुद से वचनकर
सबसे पहले वारकर
विजय का अब तिलककर।।
कविता चौहान
स्वरचित