*विभाजित जगत-जन! यह सत्य है।*
वेदना, मजबूरी, गुरूर संलिप्त
विराजमान, स्तरवार! यह सत्य है।
स्तर निम्न का, अनसुनापन है।
जियें मध्यम ,आप-अपने में ।
बड़ा, बड़े का ही बना पड़ा हैं
विभाजन, स्तरवार! यह सत्य है।
द्वंद यथावत सदियों से चला है।
बाधा श्रेष्ठ – अधम में
अन्ध-दृष्टि में, अड़ा रहे वह
संज्ञान, वर्गवार ! यह सत्य है।
विचार, व्यवहार में भी किंचित
उपदेशो से ही सिंचित।
नवीनतम , बड़ा रहे वह
परिधान , स्तरवार ! यह सत्य है।
चिंता, स्वयं की ही करें है,
न नाम कँही पर दया का है।
निम्न- निम्नतम, मध्य- बीच में
उच्च-महाजन, हर बार! यह सत्य है।
वेदना, मजबूरी, गुरूर विभाजित
जगत-जन, स्तरवार! यह सत्य है।
✍संजय कुमार” सन्जू”