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*चक्की चलती थी कभी, घर-घर में अविराम (कुंडलिया)*
सर्दी और चाय का रिश्ता है पुराना,
इतना ही बस रूठिए , मना सके जो कोय ।
ना जाने कैसी मोहब्बत कर बैठे है?
23/176.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
वो ख्यालों में भी दिल में उतर जाएगा।
** मन में यादों की बारात है **
आदमी के नयन, न कुछ चयन कर सके
शब का आँचल है मेरे दिल की दुआएँ,
आप से दर्दे जुबानी क्या कहें।