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23 Jan 2024 · 1 min read

विजय या मन की हार

विजय या मन की हार

एक विजेता होता सदैव,
समाधान का अंग।
निर्बल मन हारे मानव में
दुविधा चलती संग।

सफल मनुज रखता है युक्ति,
उलझन में भी सुलझन की।
लेकिन असफल जन के मन में
सुलझन भी उलझन सी।

विजयी कभी कहीं नहीं रुकता,
जो भी मन में ठाना है,
दुर्बल इच्छाशक्ति जिसमें,
ढूंढे फ़क़त बहाना है।

विजयी जिम्मा लेता बढ़कर,
हुई पुकार कहीं है,
कामचोर बस यही बांचता
मेरा काम नहीं है।

बाधा का समाधान ढूंढता
बनता हल का हिस्सा।
दूजे को हर काम में दिखती
पग पग कोई समस्या।

विजयी मरु थल में भी देखे,
हरियाली की आशा।
दूजे के हरियाली में भी,
मरु सी भरी निराशा।

ज्ज्बेवाला कठिन लक्ष्य को,
करता बल से सम्भव।
हारे जन को सरल कार्य भी
लगता सदा असम्भव।

सोचो क्या चुनना दोनों में
विजय या मन की हार।
जीवन में अभिशाप ‘हार’ है,
‘विजय’ बड़ा उपहार।

Language: Hindi
115 Views
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