“विचार निजी व मौलिक ही नहीं, नवीन भी होने चाहिए। कहे-कहाए, स
“विचार निजी व मौलिक ही नहीं, नवीन भी होने चाहिए। कहे-कहाए, सुने-सुनाए नहीं। घिसे-पिटे, सड़े-गले तो बिल्कुल नहीं।”
🙅प्रणय प्रभात🙅
“विचार निजी व मौलिक ही नहीं, नवीन भी होने चाहिए। कहे-कहाए, सुने-सुनाए नहीं। घिसे-पिटे, सड़े-गले तो बिल्कुल नहीं।”
🙅प्रणय प्रभात🙅