तुम रूठकर मुझसे दूर जा रही हो
वह बरगद की छाया न जाने कहाॅ॑ खो गई
जो जीते जी इंसान की कद्र नहीं करता।
আল্লা আছেন তার প্রমাণ আছে
नशा के मकड़जाल में फंस कर अब
जिंदगी फूल है और कुछ भी नहीं
अटल मुरादाबादी(ओज व व्यंग्य )
विवश लड़की
PRATIBHA ARYA (प्रतिभा आर्य )
क्यों छोड़ गई मुख मोड़ गई
माया सूं न प्रीत करौ, प्रीत करौ परमेस।
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया