“वाह रे जमाना”
“वाह रे जमाना”
पैसे की धुन जो लगी
भूख और बढ़ने लगी,
चैन सुख सब खो गया
बेचैनियाँ सिर चढ़ने लगी,
ओस की बून्दें भी मानो
दर्द को चखने लगी,
खून के रिश्तों में अब
भावनाएँ मरने लगी।
“वाह रे जमाना”
पैसे की धुन जो लगी
भूख और बढ़ने लगी,
चैन सुख सब खो गया
बेचैनियाँ सिर चढ़ने लगी,
ओस की बून्दें भी मानो
दर्द को चखने लगी,
खून के रिश्तों में अब
भावनाएँ मरने लगी।