वहशतें
रंज-ओ-ग़म से अक्फ़र वहशतें
मेरे क़ल्ब में कर गई घर वहशतें
मैं भी अपने दौर का उम्दा क़ैस था
ज़ब्त करेगी बदन सर ब सर वहशतें
वो लोग जो इश्क में ख़ारिज हो गए
खा गईं ऐसो को फिर अक्सर वहशतें
तुम लड़ो तुम चीखों जाति मजहब पे
हम तो खाक है हमारा अख्तर वहशतें
होश ए तलातुम ज़ुल्मत होने को है
अब तो दिखाओ तेवर अग़्बर वहशतें
जब भी लिखने बैठा खो गया कुनु
यार नाज़ से खूब अजब-तर वहशतें