इक दिन तो जाना है
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जन्म जो लिया तुम्हें इक दिन तो जाना है
कोई ना तेरा नहीं कोई ठिकाना है
इस जगत की रोशनी में, तू क्यों खोया रहता है
बहती है गंगा, तुम्हें भी उसमें जाना है।
कर रहा क्या काम तू, जरा देख अपने आप को
सर्व का सम्मान कर , तू छोड़ अहंकार को
धन व बल से क्या मिलेगा, क्या पायेगा भगवान को
भक्ति की इक बूँद ले ले, जाएगा अभिमान तो।
वासना से ही ढका है, ज्ञान तो भीतर पड़ा है
तू भटकता फिर रहा है, मंदिरो में खोजता है
अब भी देख निज आत्मा को, क्यों देह के पीछे पड़ा
काया का है जलना, बस तेरा कर्म ही रह जाना है।
-राही