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5 Jun 2020 · 3 min read

लेख-स्कूल बंद ही बच्चों की सुरक्षा का समाधान।

लेख-स्कूल बंद ही बच्चों की सुरक्षा का समाधान।

गर्मियों की छुट्टियों के बाद स्कूल जाने की उत्सुकता जितनी बच्चों में होती है,उससे कहीं ज्यादा उनकी माँओं को होती है।
परन्तु इस बार के हालात अलग ही थे। स्कूल खुलने का भय साफ साफ हर बच्चे के मातापिता में दिखाई दे रहा था। हो भी क्यूँ न। बच्चे उनके जिगर के टुकड़े होते हैं, और उनको एक भी खरोंच वो बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं,इस बार तो बच्चों को स्कूल भेजने का सीधा तात्पर्य उनके जीवन को दांव पर लगाना था।
कुछ मातापिता को अपने बच्चों का एक वर्ष बिना पढ़ाई के घर पर सुरक्षित रखना मंजूर था,परन्तु उनके जीवन को खतरे में डालना नहीं।
परन्तु कुछ लोग ऐसे भी थे,जिन्हें अपने बच्चों की पढ़ाई की चिंता खाये जा रही थी।ऐसे ही लोगों में कृतिका की माँ भी थी,जिसको यह डर था,यदि उसने अपनी बेटी को स्कूल नही भेजा,तो वह पिछड़ जाएगी। कृतिका पांचवीं कक्षा की होनहार छात्रा थी और उसकी मां उसकी पढ़ाई के साथ कोई समझौता नहीं करना चाहती थी।
स्कूल के खुलते ही ज्यादातर बच्चों ने स्कूल जाना शुरू कर दिया, कृतिका भी उसमें से एक थी।
स्कूल खुलने के एक सप्ताह बाद ही कृतिका की अचानक तबियत खराब हो गयी। उसको तेज बुखार के साथ साँस लेने में भी तकलीफ़ हो रही थी। उसको तुरन्त अस्पताल में एडमिट कराया गया। टेस्ट के बाद पता चला कि उसको कोरोना ने,जो इस समय पूरी दुनिया पर काला साया बनकर मंडरा रहा है, ने अपनी चपेट में ले लिया था। उसके मातपिता के पैरों तले जमीन खिसक चुकी थी। और वह अपनी बेटी को स्कूल भेजने के फ़ैसले पर पछता रहे थे। टेस्ट के बाद उन दोनों की रिपोर्ट पॉजिटिव होने के कारण, कुछ दिनों तक कृतिका और उसके मातपिता को क्वारंटाइन कर दिया गया।
कुछ दिनों बाद पता चला कि स्कूल के कई विद्यार्थी और शिक्षक भी इस बीमारी की चपेट में आ चुके थे।
इस बीमारी ने अन्य स्कूलों में भी अपने पैर पसार लिये थे। तुरन्त ही अनिश्चित समय के लिए सभी स्कूल बंद करने का निश्चय कर दिया गया।
विचारणीय प्रश्न यह है कि आरम्भ में ही इसकी गम्भीरता को समझते हुए स्कूल नहीं खोलने का निर्णय क्यूँ नहीं लिया जा रहा है।
बच्चे कोई प्रयोग(experiment)की वस्तु नहीं हैं,कि स्कूल खोलकर यह देखा जाय,कि यह बीमारी स्कूल में फैलेगी या नहीं। यदि एक भी स्कूल इस बीमारी की चपेट में आ गया,तो कितने बच्चों इसकी भेंट चढ़ जाएंगे।
स्कूल प्रशासन,प्रधानाचार्य, सभी शिक्षक और शिक्षिकायें भरसक प्रयत्न कर रहें हैं कि विद्यार्थियों की शैक्षिक गतिविधियां ऑनलाइन कक्षाओं के माध्यम से सुचारू रूप से चलती रहें।
अभी सोशल मीडिया पर यह खबर पढ़ने में आ रही है कि उनके बच्चे स्कूल नहीं जा रहे है,इसलिए उतने माह की उनकी फीस माफ की जाए। वह यह क्यूँ नहीं सोच पा रहे हैं,कि ऑनलाइन क्लास के माध्यम से बच्चों को पढ़ाना शिक्षकों के लिए स्वयं में ही एक बहुत बड़ा चैलेंज है, क्योंकि सभी बच्चों की बुद्धिमत्ता एक सी नहीं होती है। जब बच्चे और शिक्षक क्लास में आमने सामने होते हैं,तो उनकी समस्याओं का निदान करना उनके लिये बहुत आसान होता है परन्तु ऑनलाइन क्लास के माध्यम से यह उनके लिये एक कठिन टास्क हो जाता है, फिर भी वह पूरी तन्मयता से इस कार्य को अंजाम दे रहे हैं। अतः अभिभावकों का भी यह फर्ज है कि फीस को सिर्फ स्कूल जाने का आधार न मानें। घर पर सुरक्षित रहकर उनके बच्चे स्कूल के माध्यम से ज्ञानर्जित कर रहे हैं,इसलिये हम अभिभावकों को स्कूल प्रशासन को पूर्ण सहयोग देना चाहिए।
सरकार से यही आग्रह है कि समय की प्रतिकूल परिस्थितियों को स्वीकार करते हुए,बच्चों के स्वास्थ्य और उनकी जिंदगी से खिलवाड़ न करते हुए स्कूल को न खोलने का निर्णय लें जब तक इस बीमारी से बचने का कोई समाधान नहीं मिल जाता है।
By:Dr Swati Gupta

Language: Hindi
Tag: लेख
4 Likes · 472 Views
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