“लेकिन”
“लेकिन”
पता नहीं
हल की नोक से बनी
उन सारी रेखाओं से
बन पाती है
कितनी वर्णमालाएँ
खेत के पटल पर,
लेकिन
किसान तय करते दूरी
अन्न के सृजन तक।
“लेकिन”
पता नहीं
हल की नोक से बनी
उन सारी रेखाओं से
बन पाती है
कितनी वर्णमालाएँ
खेत के पटल पर,
लेकिन
किसान तय करते दूरी
अन्न के सृजन तक।