लहरों ने टूटी कश्ती को कमतर समझ लिया
लहरों ने टूटी कश्ती को कमतर समझ लिया
अच्छा हुआ कि कश्ती ने तेवर समझ लिया
जिस दाम जिसने चाहा उसी दाम में रखा
मुझको किसी ग़रीब का ज़ेवर समझ लिया
आता रहा हूँ काम मफ़ादाद के बिना
मुझको सभी ने अपना मुक़द्दर समझ लिया
मैं चाहता हूँ छुट्टियाँ कुछ तो इन्हें मिले
इन उलझनों ने मुझको तो दफ़्तर समझ लिया
कुछ इसलिए भी क़ाफ़िला लुटता चला गया
इक राहज़न को अपना ही रहबर समझ लिया
~अंसार एटवी