लड़कपन
लड़कपन
उन दिनों की खुमारी ही अलग होती थी
दो चोटियाँ, साइड से माँग निकाले
खूब ख़ुशबू वाला पाउडर लगा के
किसी से अपने को कम ना समझना
काजल की मनाही रहती थी
पर दिल कहाँ मानता था
वो चोरी से मलकहवा काजल लगा नजरे झुका चुप से घर से निकल जाना।
फिर तो सड़कों पर जैसे एक रंगीनियत ही छा जाती थी,
लड़कपन ऐसा ही होता है
आते जाते दूं चार सिरफिरे जो
घूर दें तो दिल ही धक हो जाता था
एक अजीब सा डर घर कर जाता था।
इन्ही गधों की वजह से कितने अरमान दिल में ही रह जाते थे
साज सवर कर खुल के साँस लेना भी दुशवार हो जाता था,
सिर पर तेल चुपड़े, बोरोलिन लगाये ही ज़िंदगी कटनी थी।
आँखों में सपने हज़ार, पर लाचार
बार बार दुवार पर जाने की भी मनाही
पर चोरी से निकल ही जाता है मन
अधपके से सपनों की खोज में ।।
डॉ अर्चना मिश्रा