लटक गयी डालियां
आज फिर
लटक गयी डालियां
पेड़ों की,
बारिश रिमझिम हो रही
सुबह से।
हवा चल रही सीरी – सीरी
बढ़ा रही ठंडक
ताकि ओढ़ लें
कंबल लोग सारे
अंगीठी में
ताप लें,
भाप लें
ऊष्मा जलते चूल्हे की
अभी।
~ अशोक बाबू माहौर
आज फिर
लटक गयी डालियां
पेड़ों की,
बारिश रिमझिम हो रही
सुबह से।
हवा चल रही सीरी – सीरी
बढ़ा रही ठंडक
ताकि ओढ़ लें
कंबल लोग सारे
अंगीठी में
ताप लें,
भाप लें
ऊष्मा जलते चूल्हे की
अभी।
~ अशोक बाबू माहौर