रोते घर के चार जन , हँसते हैं जन चार (कुंडलिया)
रोते घर के चार जन , हँसते हैं जन चार (कुंडलिया)
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रोते घर के चार जन , हँसते हैं जन चार
बाकी वह जो पाँचवा ,सिर्फ लोक-व्यवहार
सिर्फ लोक-व्यवहार ,मरण-शादी सब धोखा
अपनापन भ्रम-जाल , रंग-लेपन बस चोखा
कहते रवि कविराय , कौन अपने हैं होते
खुशियों में खुश कौन , दुखों में झूठे रोते
रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर,उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451