*”रेल चली”*
रेल चली
छुक छुक करके आती रेल ,
चुन्नू मुन्नू आओ जल्दी से ,
हम सब मिलकर खेले खेल ,
उछल कूद अजब गजब खेल।
छुक छुक कर सीटी बजाते ,
एक दूजे को पकड़ते जाते ,
चुन्नू मुन्नू की देखो चली रेल ,
संग मिलकर खेलते ये खेल।
आओ लंबी रेल बनाए हम ,
छुक छुक बढ़ते जाए हम ,
सीटी बजाते ही चली रेल ,
एक दूजे को देख पेल धकेल।
रेल चल पड़ी नानी के गाँव ,
पेड़ों की मिलेगी ठंडी छाँव ,
दादी के गाँव भी जाये रेल ,
गर्मी की छुट्टी मस्ती का खेल।
शशिकला व्यास ✍
स्वरचित मौलिक रचना