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16 Jan 2024 · 1 min read

*आओ चुपके से प्रभो, दो ऐसी सौगात (कुंडलिया)*

आओ चुपके से प्रभो, दो ऐसी सौगात (कुंडलिया)
_________________________________
आओ चुपके से प्रभो , दो ऐसी सौगात
भीतर से लगने लगे , जैसे हुआ प्रभात
जैसे हुआ प्रभात ,जगे सब कुछ जो अपना
जगत लगे निस्सार , क्षुद्र हो जैसे सपना
कहते रवि कविराय , परम आनंद जगाओ
करूँ तुम्हारा ध्यान ,नाथ ! प्रियतम बन आओ
——————————-
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

1 Like · 80 Views
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