रूपमाला छंद
!! श्री !!
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(रूपमाला छंद )
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साँस को जो भी चलाये, है कहो तो कौन ।
जानते हैं कौन वह फिर ,भी खड़े हैं मौन ।।
मौन तोड़ें सत्य के मुख, से उचारें बोल ।
जिंदगी हमको मिली जो , है बड़ी अनमोल ।।
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देख माया चक्र में, कैसा फँसा संसार ।
फेर है निन्यानवें का ,कौन पाये पार ।।
कम नहीं ज्यादा नहीं, काँटा मिला के तोल ।
जा रहे हैं नीर से , बहते दिवस अनमोल ।।
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राधे…राधे…!
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा !
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