रिहायी कि इमरती
रिहाई कि इमरती –
स्वतंत्रता किसी भी प्राणि का जन्म सिद्ध अधिकार है जिसे कभी छीना नहीं जा सकता हां कभी कभी प्राणि विशेष कर मनुष्य अपने अहंकार शक्ति दंभ के उत्कर्ष में एक दूसरे को परतंत्र अवश्य बनाते है कभी वर्चस्व के लिए कभी सर्वस्व के लिए युद्ध लड़ कर एक दूसरे को परतंत्र बनाने कि होड़ लगी रहती है तो कभी कभी व्यक्ति खुद के बुने के जाल का परतंत्र हो जाता है तो कभी कभी धोखे फरेब के चाल का शिकार बन परतंत्रता से भयाक्रांत रहता है।
प्रस्तुत कहानी सत्य घटना पर आधारित ऐसे ही एक गुसाग्र छात्र के परतंत्रता के भय को दर्शाती वर्तमान समय को सत्य का दर्पण दिखाती है।
कानपुर में नगरपालिका कानपुर द्वारा कमजोर वर्ग के लिए बनाई गई कॉलोनी के ब्लाक नंबर 33/1 के मकान में रहता साधारण परिवार जिसके मुखिया बैंक ऑफ बड़ौदा में वॉचमैन बोले तो चौकीदार पद पर कार्यरत बासुदेव मणि त्रिपाठी मगर उन्हें कोई नाम से नही जानता था अधिकतर लोग उन्हें देवता के ही नाम से जानते थे देवता सम्बोधन देने वालों ने उन्हें ऐसे ही नहीं देवता बना दिया था दान वीर कर्न एवं शिवी भी कलयुग में शायद उनके स्तर के होते साफ़गोई क्रोध दुर्वासा जैसा लेकिन पल भर में करुणा के सागर जैसा उछाह भरा ऐसे व्यक्तित्व के धनी थे कहा जाय तो जथा नाम तथा गुण बासुदेव उर्फ देवता।
परिवार में पत्नी के अलावा तीन बेटे एव एक पुत्री थी परिवार अक्सर गांव ही रहता गांव उत्तर प्रदेश पूर्वांचल का अंतिम जनपद देवरिया का अंतिम गांव था रतनपुरा ।
परिवार रहे या ना रहे भीड़ भाड़ सदा बना रहता था कोई न कोई रहता ही था बहुत दिनों तक भाई के दामाद के भाई भगवान मिश्र साथ रहते थे लेकिन ऐसी परिस्थितियों ने जन्म लिया जिसके कारण बड़े बेटे को गांव से कानपुर लाना पड़ा और परिवार भी रखना विवसता बन गयी ।
वर्ष उन्नीस सौ बहत्तर में देवता अपना परिवार कानपुर अपने साथ रहने के लिए बुलाया देवता नाम के ही देवता नही थे स्वभाव के देवता ही थे एक तो उनके पास सदा बेवजह कि खाने पीने वालो कि भीड़ लगी रहती थी कोई नौकरी के लिए आता कोई किसी मदद लिए आता स्वंय बहुत छोटे पद पर कार्य करते थे देवता लेकीन उनसे लोंगो को ऊम्मीदे बहुत थी बहुत कम वेतन मिलता पैसे के लिए परेशान रहते मगर परिवार के अलावा खाने वालों की भीड़ लगी रहती आलम ये था की अक्सर भीड़ के कारण फर्श पर लोंगो को सोना पड़ता लगता ये था की किसी विगड़े रईस या राजनेता का परिवार ही 33/1 में रहता है ।
ऊपर नेक राम गुप्ता एव प्रभुदयाल शुक्ल रहते थे गुप्ता जी तो कभी कभार आते मगर प्रभुदयाल शुक्ला जी बराबर आते जाते रहते उन्होंने ही बासुदेव मणि त्रिपाठी का नाम देवता रखा था जिस नाम से चर्चित थे ।
सामने एक राज्य कर्मचारी बीमा अस्पताल में कार्यरत बलिया जनपद कि मिडवाइफ रहती थी जिससे देवता एव प्रभुदयाल शुक्ल का छत्तीस का आंकड़ा था।
एका एक एक दिन शाम को देवता अपने साथ अट्ठाइस तीस वर्ष के ठिनगे कद काठी के व्यक्ति को साथ लेकर आये घर मे पहले से ही भीड़ थी माँ ने पूछा ये कौन है पति देवता ने बताय ये है चंद्रेदेखर शर्मा जौनपुर लवाईन खुटहन के निवासी है पत्थर कालेज में डॉ गोविंदा के अंडर दाल पर पी एच डी करते है बहुत कुशाग्र स्कॉलर है समय समाज में युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत है।
आजाद नगर के में द्विवेदी जी के मकान में किराए पर रहते थे द्विवेदी जी कि लड़की इनके पास पढ़ने लिखने अक्सर इनके पास आती थी मकान मालिक कि लड़की होने के कारण ये बहुत गम्भीरता एवं लगन से उसे पढ़ाते वह बहुत दिनों से लापता है।
द्विवेदी जी ने इन्हें अपनी पुत्री भगाने के आरोप में इन्हे नामजद किया है ये बेचारा भागा भागा फिर रहा है इसकी जान आफत में पड़ी है जमानत हो नही पा रही है अब ये यही रहेंगे जब तक जमानत नही हो जाती एव इनकी व्यवस्था उचित नही हो जाती।
वास्तव में देखने सी एस शर्मा उर्फ चंद्रशेखर शर्मा भय दहसत से भयाक्रांत एवं स्वतन्त्र देश के स्वतन्त्र नागरिक कि फरेब एवं भरोसा टूटने कि गुलामी को अपने ही देश कि कानून व्यवस्था से थी वास्तव में चंद्रशेखर शर्मा अपने समय काल के सर्वश्रेष्ठ एवं होनहार युवा छात्र थे और अपने काल में आदर्श अनुकरणीय थे।
देवता के सामने किसी कि नही चलती कोई कर भी क्या सकता था चंद्रेदेखर शर्मा उर्फ सी एस शर्मा देवता के परिवार के अंग बन गए।
देवता उनके जमानत के लिए सी एस शर्मा के साथ दौड़ने लगे धीरे धीरे चंद्रशेखर शर्मा एव देवता का परिवार एक दूसरे परिवार के लग भग अंग बन गए जिसके कारण सी एस शर्मा के ससुराल गांव के सदस्यों का देवता के परिवार में लगभग पारिवारिक सदस्य कि तरह आना जाना शुरू हो गया सी एस शर्मा का विवाह निशा नाम कि लड़की से हुआ था जो मार्कण्डेय शर्मा कि पुत्री थी और उनका परिवार बंगला नंबर चालीस कैंट वाराणसी में रहता में रहता था एवं दो साले थे सी एस शर्मा के जिसमें नरेंद्र शर्मा पी टी टीचर् सीतापुर में कार्यरत थे दूसरा बेटा अध्ययनरत था अपने कार्य के दौरान बहुत दिनों तक वाराणसी रहने का शुभअवसर प्राप्त हुआ है आर्कण्डे शर्मा के परिवार को बहुत खोजने कि बहुत कोशिश कि किंतु कोई पता नही चल सका ।
चंद्रशेखर शर्मा उर्फ सी एस शर्मा के जमानत के लिए भाग दौड़ जारी थी मगर इतना चर्चित केश था कि कोई जज या वकील जल्दी इस केश में हाथ डालने को तैयार नही था ।
बड़ी मुश्किल से उस दौर के सबसे बड़े तेज तर्रार वकील जिनके बारे में मशहूर था कि जजों कि खाट खड़ी कर देते है अपनी कुशाग्रता से और उलझे एवं संगीन पेचीदा मामलों में भी निश्चित कोई न कोई राह निकाल देते है ने सी एस शर्मा के जमानत के लिए बातौर वकील पैरबी करने के लिए हांमी भरी।
खास बात सी एस शर्मा के केश में इतनी ही थी कि उनको द्विवेदी जी एवं उनके परिवार को छोड़कर जिनके किराएदार थे सी एस शर्मा को छोड़कर सी एस शर्मा को कोई पहचानता नही था सी एस शर्मा ने होशियारी इतनी अवश्य किया था कि अपना कोई फ़ोटो नही रखा द्विवेदी जी के घर किरायेदार के रूप में नहीं छोड़ रखा था ।
पुलिस के पास सिर्फ लड़की भगाने वाले की हुलिया के रूप में सी एस शर्मा कि हुलिया थी जैसे लंबाई कद काठी रंग आदि।
पुलिस के पास उस दौर में अपराधी का स्केच बनाने कि बहुत सुविधा भी नही थी अतः सी एस शर्मा थोड़ी बहुत सावधानी से बचते रहे ।
वकील नन्दलाल जायसवाल ने जमानत कि फूलप्रूफ योजना बनाई जिसके अंतर्गत किसी भी सुविधा जनक दिन पर सी एस शर्मा उर्फ चंद्रशेखर शर्मा को कानपुर जिला एवं सत्र न्यायाधीश के न्यायालय में आत्मसमर्पण करना था ।
जिस उचित दिन को नन्दलाल जैसवाल ने निर्धारित किया था उस दिन देवता कानपुर जिला सत्र न्यायाधीश के न्यायलय में हाजिर हुये और स्वंय को सी एस शर्मा उर्फ चंद्रशेखर शर्मा बताया जज ने उन्हें पुलिस कस्टडी में दे दिया और पुलिश ने रिमांड पर लेने हेतु प्रार्थना पत्र दिया।
जज ने सुनवाई व्यस्तता के कारण लंच के बाद करने के लिए समय दिया जिला जज को अन्य विवादों कि सुनवाई में बिलम्ब हो गया और शाम हो गयी न्यायालय समाप्त हो उठने वाला था तब जिला जज के सज्ञान में पुलिस ने सी एस शर्मा के रिमांड पर सुनवाई हेतु आवेदन विचारार्थ प्रस्तुत किया विद्वान न्यायाधीश ने सी एस शर्मा को रिमांड पर दे दिया जब विद्वान न्यायाधीश उठने लगे तब एडवोकेट नन्दलाल जयसवाल ने जज साहब से निवेदन किया कि उनकी बात सिर्फ सुन ले बाद में जो निर्णय लेना हो ले।
नन्दलाल जायसवाल ने कहा योर आनर जिस चंद्रशेखर शर्मा उर्फ सी एस शर्मा को रिमांड पर देने हेतु आप द्वारा आदेशित किया गया है वह तो न्यायलय में कभी हाज़िर ही नही हुआ पुलिस कि कस्टडी में जो व्यक्ति है वह है बासुदेव मणि त्रिपाठी उर्फ देवता बैंक ऑफ बड़ौदा में वॉचमैन पद पर कार्यरत और बासुदेव मणि त्रिपाठी उर्फ देवता के पहचान के सारे उपलब्ध दस्तावेज प्रस्तुत कर दिया ।
अब प्रश्न यह था माननीय विद्वान न्यायाधीश के समक्ष कि वह क्या करे क्या न करे चंद्रशेखर शर्मा उर्फ सी एस शर्मा के केश कि सुनवाई होती रही उन्हें न्यायलत में हाज़िर मानकर एव रिमांड पर भी देने का आदेश दे दिया कड़ाके कि ठंठ में विद्वान न्यायाधीश महोदय पशीने से नहा गए नन्दलाल जायसवाल के विषय मे मशहूर था कि किसी भी बिगड़े से विगड़े केश को चुटकी में हल कर देते है सी एस शर्मा उर्फ चंद्रशेखर शर्मा के केश में भी उनके दिमागी कसरत ने चमत्कार कर दिया विद्वान न्यायाधीश के पास दो ही विकल्प बचे थे एक कि वह पुलिस से कहे कि असली सी एस शर्मा को पकड़ कर न्यायालय में तत्काल हाज़िर करे जो पुलिस के लिए लगभग असंभव था क्योकि लगभग एक वर्ष में पुलिस चंद्रशेखर शर्मा को पहचान तक नही पाई थी हाज़िर करना तो बहुत बड़ी बात थी दूसरा चंद्रशेखर शर्मा कि बेल ग्रांट करे विद्वान न्यायाधीश ने सी एस शर्मा कि बेल ग्रांट कर दी ।
शाम को देवता मूंग कि इमरती चंद्रेदेखर शर्मा को जमानत मिलने कि खुशी में लेकर आये जिसे सब ने छक कर खाया मैंने जीवन मे पहली बार मूंग कि इमरती का स्वाद लिया ।
सी एस शर्मा उर्फ चंद्रशेखर शर्मा को पुलिस के दहसत खौफ कि गुलामी से आज़ादी मिली और स्वतन्त्र होकर आजादी से रहने का शुभ अवसर प्राप्त हुआ और उनकी सामान्य जीवन चर्या शुरू हुई और धीरे धीरे वो देवता के परिवार के अभिन्न अंग बन गए और देवता के परिवार के हर छोटे बड़े विचारों एव व्यवहारों में साझीदार हो गए ।
इसी दौरान आसाम से एक व्यक्ति जो असम में किसी सेठ के यहॉ नौकरी करता था सेठ का आठ हजार रुपया लेकर भागा और कानपुर देवता के घर पहुंचा रहने वाला वह बिहार के दर्जी पट्टी या कही वही का रहने वाला था उसने अपना आठ हजार रुपया देवता को दिया की नही इस तथ्य कि जानकारी मुझे भलीभाँति नही है किंतु सी एस शर्मा अवश्य उस पैसे के लिए बी डी तिवारी जो नेशनल सुगर इंस्टीट्यूट कानपुर में काम करते थे के साथ मिलकर देवता पर कुछ दबाव बनाया यह सोची समझी साजिश थी या खुराफात मैं अब तक नही समझ पाया।
कुछ दिन बाद वह व्यक्ति पुनः पता नही कहा चला गया
सी एस शर्मा न्यायालय से जमानत मिलने के बाद अपनी पत्नी निशा शर्मा को लेकर आये और देवता के परिवार के साथ रहने लगे कुछ दिनों उपरांत उनकी पत्नी ने एक खूबसूरत कन्या रत्न को जन्म दिया जिसका नाम बड़े प्यार से दीपा रखा ।
सन उन्नीस सौ चौहत्तर लगभग दो वर्षों के बाद मेरे यज्ञों पवित सांस्कार में शर्मा जी एव उनकी पत्नी निशा शर्मा मेरे गांव रतनपुरा देवरिया भी आये एकदम पारिवारिक सदस्य की तरह ।
सी एस शर्मा के चाचा बीमार हुये और कानपुर इलाज के लिए आये तब उन्हें उरसिला अस्पताल में एडमिट कराया गया उनकी सेवा मैंने भी बहुत किया ।
सी एस शर्मा उर्फ चंद्रशेखर शर्मा के साथ मुझे बहराई च मक्का अनुसंधान फार्म पर जाने का अवसर प्राप्त हुआ शर्मा जी को अपने रिसर्च के कार्य से जाना था बहराई च मक्का फार्म पर कुछ शोध से संबंधित कार्य था सी एस शर्मा उर्फ चंद्रशेखर शर्मा का शोध विषय था जेनेटिक्स और विषय था डाले दालो के प्रजाति को जेनेटिकली अत्यधिक उत्पादक बनाना था एवं उनके एक्सपर्ट थे भारत के मूर्धन्य कृषि विज्ञानी डॉ गोविंदा जो कानपुर पत्थर कालेज में प्लांट पैथोलॉजी पढ़ाते थे सन उन्नीस सौ चौहत्तर में पत्थर कालेज को उत्तर प्रदेश का संभवतः पहला पंडित चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय बनाया गया और उसके पहले कुलपति डॉ कैलाश नाथ कौल उर्फ के एन कौल जो तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा जी के मामा लगते थे को बनाया गया उनकी विशेषता ये थी कि वे सिर्फ कुकुरमुत्ता एवं दही है खाते यानी मशरूम एवं दही उस जमाने में उनका दैनिक भोजन भी चर्चा का विषय था।
सी एस शर्मा सन उन्नीस सौ पछत्तर में 33/1 छोड़कर गोविंद नगर किराए के अलग मकान में रहने लगे उसके बाद देवता के परिवार से उनका संबंध टूट गया
मै अपने सेवा के दौरान वाराणसी और फैजाबाद पदस्थापित रहा एवं जौनपुर से भी घनिष्ठ संबंध था उस समय बहुत से ऐसे मेरे मित्रो ने चंद्रशेखर शर्मा से मिलवाने के लिए दबाव बनाया लेकिन संयोग शायद नहीं बन पाया लेकिन यह अवश्य स्पष्ट हो गया कि सी एस शर्मा उर्फ चंद्रशेखर शर्मा द्विवेदी जी कि लड़की भगाने के केश से बरी हुए और भारतीय स्टेट बैंक में कृषि अधिकारी नियुक्त हुए और उच्च पद से सेवा निवृत्त हुए साथ ही साथ उनके बचपन के बहुत से मित्रो ने इस बात कि तस्दीक किया कि चंद्रशेखर शर्मा अपने समय काल के बहुत मेधावी प्रदेश स्तरीय छात्र थे जिसके कारण जौनपुर और शाहगंज खुटहन लवाईन का नाम रौशन था।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश।।